सौ.ज्योती. प.शिंदे : दोन गझला


१ .
कैक  सा-या  वेदनांना,आज  मी  हरवून  आले;
दुःख  माझे  अंतरीचे,आज  मी    बुडवून  आले!

आप्तकांच्या  वादळांनी  घात  केला,  भावनांचा;
जीवघेण्या  वास्तवाला,आज  मी  सोसून  आले!

काफिला होता  व्यथांचा,सोबतीला  रात्र  वैरी;
रोखलेल्या  आसवांना  आज  मी कोंडून  आले!

स्पंदनाने  रात्रभर  जागीच असते  दिवसभर  ही;
चांदण्या  रात्री  उन्हाशी,आज  मी  सांगून  आले!

काळजा  मधल्या  झ-यांनी,जाळ  ज्योती  वंचनांची;
हे  खुलासे  अन  दिलासे,आज  मी  जाळून  आले!   

  
२. 
या  सुखांचे  मागणेही  फार  झाले;
दुःख  माझेही,  असे  बेजार  झाले!

आस  होती  आज  तुजला  भेटण्याची;
स्वप्न  माझे  आज , ते  साकार  झाले!

स्पर्श   होता  रात्र  सारी  धुंद  झाली;
श्वासही   माझे ,  सख्या अंगार झाले!

वेदनेचे  सोसले , मी  घाव  सारे;
शब्दही  तेव्हा,  मुके  आधार  झाले!

प्रेम  जेव्हा  दाटले,  डोळ्यात   माझ्या ;
आठवांना   आसवांचे , भार  झाले!

- सौ.  ज्योती.  प.  शिंदे

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